RIP Netaji Mulayam Singh Yadav: सपा नेता मुलायम सिंह यादव का सोमवार की सुबह निधन हो गया. पीएम मोदी ने नेताजी की 8 तस्वीरों को शेयर कर लोकतंत्र का सेवक बताया है. मुलायम सिंह यादव नेताजी बनने से पहले कुश्ती किंग थें, वे बड़े बड़े पहलवानों को धूल चटा दिया करते थें. इसके बाद उन्होंने अपना अखाड़ा बदल दिया और राजनीति के अखाड़े में आ पहुंचे. राजनीति के अखाड़े में भी नेताजी का कोई शानी नहीं था. अब समाजवादी पार्टी के संस्थापक हमारे बीच नहीं रहें. आज हम आपको नेताजी के कुछ किस्से बताने जा रहें हैं, जो मुलायम सिंह यादव को ‘नेताजी’ बनाते हैं.
जवानी के दिनों में पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह यादव पहले शिक्षक हुआ करते थे. बाद में समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर राजनीति में आए. 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहला चुनाव जीता और सबसे कम उम्र में विधायक बनकर राजनीतिक करियर शुरू किया. मुलायम सिंह यादव 10 बार विधायक और 7 बार सांसद रहे हैं.
राजनीति के अखाड़े और पहलवानी के अखाड़े में बहुत अंतर था. पहलवानी के अखाड़े में शारीरिक पटखनी देनी होती है, लेकिन राजनीति के अखाड़े में मानसिक तौर पर. नेताजी बनने के साथ ही मुलायम सिंह यादव ये बेहद अच्छी तरह से समझ गए थें. सियासत के भी बड़े अखाड़ेबाज बने, विरोधियों को चित किया. सियासी और निजी जिंदगी आसान नहीं थी, पर लड़ते रहे. मौत सामने आई तो उससे भी दो-दो हाथ किए. ये थे मुलायम सिंह यादव, समाजवादियों ही नहीं.. पूरे देश के नेताजी.
I had many interactions with Mulayam Singh Yadav Ji when we served as Chief Ministers of our respective states. The close association continued and I always looked forward to hearing his views. His demise pains me. Condolences to his family and lakhs of supporters. Om Shanti. pic.twitter.com/eWbJYoNfzU
— Narendra Modi (@narendramodi) October 10, 2022
जब मुलायम ने कार्यकर्ताओं से कहा- चिल्लाओ नेताजी मर गए
तारीख 4 मार्च 1984, दिन रविवार. नेताजी की इटावा और मैनपुरी में रैली थी. रैली के बाद वो मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए. दोस्त से मुलाकात के बाद वो 1 किलोमीटर ही चले थे कि उनकी गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई. गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए.
करीब आधे घंटे तक छोटेलाल, नेत्रपाल और पुलिसवालों के बीच फायरिंग चलती रही. छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था, इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं. यही वजह है कि उन दोनों ने 9 गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाईं, जहां नेताजी बैठा करते थे. लेकिन लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी डिस्बैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई. नेताजी तुरंत समझ गए कि उनकी हत्या की साजिश की गई है. उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई.
उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं ‘नेताजी मर गए. उन्हें गोली लग गई. नेताजी नहीं रहे.’ जब नेताजी के सभी समर्थकों ने ये चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए. उन्हें मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर दीं और वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की उसी जगह मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया. इसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर कुर्रा पुलिस स्टेशन तक ले गए.
जब दरोगा को मंच से फेंक दिया
मैनपुरी के करहल का जैन इंटर कॉलेज और तारीख थी 26 जून 1960. कैंपस में कवि सम्मेलन चल रहा था. यहां उस वक्त के मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही भी मौजूद थे. वो मंच पर पहुंचे और अपनी लिखी कविता ‘दिल्ली की गद्दी सावधान’ पढ़ना शुरू की. कविता सरकार के खिलाफ थी. इसलिए वहां तैनात UP पुलिस का इंस्पेक्टर मंच पर गया और उन्हें कविता पढ़ने से रोकने लगा. वो नहीं माने तो उनका माइक छीन लिया.
पुलिस अधिकारियों को फोन किया- कारसेवकों पर गोली चलवा दो
1989 में लोकदल से मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 90 का दौर शुरू होते-होते देशभर में मंडल-कमंडल की लड़ाई शुरू हो गई. ऐसे में 1990 में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की.
30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई. कारसेवक पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे. मुलायम सिंह यादव ने सख्त फैसला लेते हुए प्रशासन को गोली चलाने का आदेश दिया.
पुलिस की गोलियों से 6 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके दो दिन बाद फिर 2 नवंबर 1990 को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, मुलायम के आदेश पर पुलिस को एक बार फिर गोली चलानी पड़ी, जिसमें करीब एक दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई.
कारसेवकों पर गोली चलवाने के फैसले ने मुलायम को हिंदू विरोधी बना दिया. विरोधियों ने उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’बना दिया. हालांकि, बाद में बाद में मुलायम ने कहा था कि ये फैसला कठिन था. लेकिन, मुलायम को इसका राजनीतिक लाभ भी हुआ था.
कारसेवकों के विवादिच ढांचे के करीब पहुंचने के बाद मुलायम ने सुरक्षाबलों को गोली चलाने का निर्देश दे दिया. सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई में 16 कारसेवकों की मौत हो गई, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए. बाद में मुलायम ने बताया कि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 28 लोग मारे गए थे.
फैसला लिया था कि शहीद जवान का शव पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके घर पहुंचाया जाएगा
मुलायम देश के रक्षा मंत्री भी रहे हैं. मुलायम 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक रक्षा मंत्री रहे हैं. ये वो दौर था जब देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था. रक्षा मंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने एक बड़ा और अहम फैसला लिया था.
आज अगर किसी शहीद सैनिक का शव सम्मान के साथ उनके घर पहुंच रहा है, तो इसका श्रेय मुलायम सिंह यादव को ही जाता है. आजादी के बाद से कई सालों तक अगर सीमा पर कोई जवान शहीद होता था, तो उनका शव घर पर नहीं पहुंचाया जाता था. उस समय तक शहीद जवानों की टोपी उनके घर पहुंचाई जाती थी. लेकिन जब मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री बने, तब उन्होंने कानून बनाया कि अब से कोई भी सैनिक अगर शहीद होता है तो उसका शव सम्मान के साथ घर तक पहुंचाया जाएगा. मुलायम सिंह यादव ने फैसला लिया था कि शहीद जवान का शव पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके घर पहुंचाया जाएगा. डीएम और एसपी शहीद जवान के घर जाएंगे. मुलायम के रक्षा मंत्री रहते ही भारत ने सुखोई-30 लड़ाकू विमान की डील की थी.
मेदांता हॉस्पिटल में ली अंतिम सांस
82 साल के समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया. उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर अंतिम सांस ली. वे यूरिन इन्फेक्शन के चलते 26 सितंबर से अस्पताल में भर्ती थे. सैफई में मंगलवार को मुलायम का अंतिम संस्कार किया जाएगा.
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